Akhiyon Ke Jharokhe Se

340.00


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आप सभी को आज यह बतलाते हुए सहर्ष खुशी हो रही है कि इस किताब में जितनी रचनाएं मौजूद हैं वे सभी हमारे अपने बीते समय में लिखी डायरी में सिमटकर रह गई थी और अब ये सभी बंद डायरी से रचनाओं के शब्द निकलते हुए आज एक संग्रहणीय संकलन में अपनी बात खुले मन से व्यक्त कर रहे हैं.

Description

आप सभी को आज यह बतलाते हुए सहर्ष खुशी हो रही है कि इस किताब में जितनी रचनाएं मौजूद हैं वे सभी हमारे अपने बीते समय में लिखी डायरी में सिमटकर रह गई थी और अब ये सभी बंद डायरी से रचनाओं के शब्द निकलते हुए आज एक संग्रहणीय संकलन में अपनी बात खुले मन से व्यक्त कर रहे हैं. हालांकि ये सभी रचानाएं उस उम्रेदौर की रही जब नजरों को बस खूबसूरती देखते ही दिली धड़कनें तेज हो जाया करती रहीं और जब कुछ शांत अपने होते रहे तब बनते देखकर विचार अपने उभरते हुए महसूस किया और हमने इन्हें शब्दों में ढा़लकर यह किताब जिसका शीर्षक है अंखियों के झरोखे से इस शीर्षक से यह तो स्पष्ट हो रहा है कि आंखें ही जो देखती हैं वही दिल अपने महसूस करता है और दिमाग में हलचल मची हुई रहती है एवं विचार भी शब्दों को ढ़ूंढ़ते हुए अपने बने नजर आने लगते हैं. इसी का यह परिणाम है कि यह किताब जो कभी अतीत में हमारी निजी डायरी में सिमटकर रह गई थी अब अपने नए जीवन में जीवंत होने का सुनहरा अवसर मिला है. इसी तरह इसे साकार करने के लिए हमारी श्रीमती निशी श्रीवास्तव जी की महती भूमिका है जिन्होंने हमें इसे अपने तक सीमित ना रखने की सलाह दी और प्रकाशित करने के लिए आरेंज बुक्स पब्लिकेशन का नाम सुझाते हुए अपने एप्रोच कर नई दिशा दी. आज भले ही हम सेवानिवृत हुए डेढ़ दशक बीत रहा है और बालों की सफेदी भी झलकने लगी है लेकिन अपना दिल अभी भी टीनएज में जैसे धड़कता रहा उसी तरह आज भी है और हमें यह कहते हुए खुशी महसूस होती है कि आज उम्रेदौर में मिला अनुभव अधिक जरूर है लेकिन नजर आज भी खूबसूरती को देखने में जरा भी परहेज नहीं करती है. यहां जितनी तस्वीरें अलग अलग भाव भंगिमाओं के साथ युवतियां मौजूद हैं उन्हें देख अपनी नजर से देख जो उनकी अंखियों में नजर आते महसूस किया उसे रचना में निरुपित किया गया है. यहां हर नजर आती तस्वीर ही हमारी रचनात्मक रचना का आधार बना हुआ है और आप सभी जब इसे अपनी मिली फुर्सत में बांचेंगे तब हमारे लिखे में इसकी झलक शब्दों में ढ़लता हुआ पाएंगे. * भावनाएं कभी भी उम्र की मोहताज नहीं होती है वह अपने चिरयौवन में बनी रहती है यही विचार आपको इसे पढ़ते हुए महसूस होंगे. आप सभी सुधीजनों से यही गुजारिश करते हैं कि इस किताब को लेकर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देकर हमें अनुगृहीत कीजिएगा. सादर सुनील कुमार श्रीवास्तव ठाणे मुम्बई